Yoga & Respiratory System

अष्टांग योग | Ashthang Yog


अष्टांग योग के आठ अंग हैं।

  1. यम
  2. नियम
  3. आसन
  4. प्राणायाम
  5. प्रत्याहार
  6. धारणा
  7. ध्यान
  8. समाधि

यम

सभी प्राणियों के साथ किये जाने वाले व्यावहारिक जीवन को यमों द्वारा सात्त्विक व दिव्य बनाना होता है। यम पाँच हैं।

  • सत्य

बात को ज्यों का त्यों कह देना सत्य नहीं है, वरन् जिसमें प्राणियों का अधिक हित होता हो, वही सत्य है।

  • अस्तेय

अस्तेय का वास्तविक तात्पर्य है, अपना वास्तविक हक खाना। विचार कीजिए- इस वस्तु पर मेरा धर्म पूर्वक हक है? इसमें किसी दूसरे का भाग तो नहीं, अधिक तो नहीं ले रहे हैं, कर्त्तव्य में कमी तो नहीं, जिनको चाहिए दिये बिना तो नहीं ले रहे हैं।

  • अहिंसा

अहिंसा का तात्पर्य है, द्वेष रहित होना, प्रेम की पूजा, मृत्यु से विचलित न होना।

  • ब्रह्मचर्य

ब्रह्मचर्य का अर्थ है- मन, वचन और काया से समस्त इन्द्रियों का संयम।

  • अपरिग्रह

अनावश्यक चीजों का संग्रह न करना अपरिग्रह है।

नियम

अपने शरीर, इन्द्रिय तथा अन्तःकरण से सम्बन्ध रखने वाले व्यावहारिक विषयों को सात्त्विक, पवित्र व दिव्य बनाना। नियम पाँच हैं।

  • शौच

शरीर,वस्त्र, मकान एवं उपयोग में आ रही सामग्री को स्वच्छ पवित्र रखना। जल से शरीर की, सत्य से मन की शुद्धि होती है।

  • सन्तोष

भली-बुरी परिस्थितियों में प्रसन्न रहना सन्तोष का तात्पय हा

  • तप

सदुद्देश्य के लिए कष्ट सहना तप है।

  • स्वाध्याय

अपने आप अपने बारे में पढ़ना। स्वाध्याय के योग्य मनोभूमि तैयार करने के लिए सद्ग्रन्थों का अवलोकन बहुत ही आवश्यक

  • ईश्वर प्रणिधान

ईश्वर को धारण करना, मित्र की तरह सलाह लेना।अन्तरात्मा से सदैव योग्य, उचित एवं लाभदायक उत्तर मिलता है।

आसन

आसन का सर्वप्रथम उद्देश्य तो स्थिर होकर कुछ घण्टे बैठ सकने का अभ्यास है। दूसरा उद्देश्य शारीरिक अंगों और नस-नाड़ियों का ऐसा व्यायाम करना है, जिससे उनके दोष निकलकर कार्यक्षमता की वृद्धि हो सके।

प्राणायाम

यम-नियमों द्वारा अन्तः चेतना की सफाई के साथ-साथ, शरीर व मन को बलवान बनाने के लिए आसन, प्राणायाम की क्रिया सम्पन्न की जाती है।

प्रत्याहार

प्रत्याहार का अर्थ है - उगलना। अपने कुविचारों, कुसंस्कारों, दु:स्वभावों, दुर्गुणों को निकाल बाहर करना । महान् सम्पदा के स्वागतार्थ योग्य मनोभूमि का निर्माण। आँख आदि इन्द्रियाँ अपने-अपने विषयों की ओर भागती हैं, उनको वहाँ से रोकना (और इष्ट साधन में लगाना) प्रत्याहार है।

धारणा

अवधारणा का तात्पर्य उसके प्रकार के विश्वास के धारण करने से है, जिनके द्वारा मनोवांछित स्थिति प्राप्त होती है।

ध्यान 

ध्यान का तात्पर्य है, चिन्तन को एक ही प्रवाह में बहने देना। उसे अस्त-व्यस्त उड़ानों में भटकने से रोकना। किसी एक ही लक्ष्य पर कुछ समय विचार करना। नियत विषय में अधिकाधिक मनोयोग के साथ जुट जाना, तन्मय हो जाना, सारी सुध-बुध भुलाकर उसी में निमग्न हो जाना, ध्यान है।

समाधि

जब किसी बात पर भली प्रकार निर्विकल्प रूप से चित्त जम जाता है, तब उस अवस्था को समाधि कहा जाता है। इस स्थिति में विकारी मन अपनी सारी चञ्चलता के साथ एक गाड़ी निद्रा में चला जाता है।


नमस्ते.